Friday, 13 March 2009

नागौर किले के सामने का चांदनी चौक

( जब पता चला कि नागौर में दो दिन का सूफी संगीत का एक बड़ा आयोजन होने वाला है। मैं अपने संस्थान से समय चुरा कर दो दिन के लिए राजस्थान आया। ख़ुद को रोक ही नहीं पाया। नागौर किले में ' सूफी दरबार ' का यह दूसरा साल था। इसमें ईरान, अफ्रीका, ईजिप्ट, कश्मीर, पंजाब, हैदराबाद और जयपुर समेत राजस्थान से ख्यात सूफ़ी फ़नकार शिरकत करने वाले थे।

चंद धनी पर्यटकों और 1000 रूपये की टिकिट खरीद सकने वाले कुछ आला रईसों की पहुँच ही इस सूफ़ीयाना मौसिकी तक थी। मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के कर्ताधर्ता जोधपुर के महाराज गज सिंह जी, उनकी रानी, पुत्री राजकुमारी नंदिनी, भाई महाराज दिलीप सिंह, राजकुमार शिवराज सिंह, महेश बाबू और राजघराने के दूसरे सदस्य इसके आयोजन में शामिल थे। ब्रिटेन का हेलन हेमलिन ट्रस्ट और बनियन ट्री भी प्रायोजन में शामिल था। 31 जनवरी और 1 फरवरी को शाम 7 से 10 बजे तक नागौर के अहिछ्त्रगढ़ किले में यह महफ़िल सजनी थी।

अपने पिता की बदौलत मुझे भी रूमानियत और सूफ़ियत को देख -सुन -महसूस कर पाने का मौका मिलने वाला था। नागौर किले तक पहुँचने से लेकर सूफ़ी दरबार की आखिरी पेशकश तक मैंने क्या अनुभव किया ......हाज़िर है।
)



31 जनवरी 2009 , शाम 7 बजकर 05 मिनट
'मैं नागौर किले के सामने खड़ा इस इंतज़ार में हूँ कि एक परिचित सज्जन आए और मुझे अन्दर जाने की अनुमति दिलवा दें

" सदियों पुराने नागौर के अहिछ्त्रगढ़ किले का मुख्य दरवाज़ा ...सामने जीता-जागता भरा हुआ मैदान .....चारों तरफ़ बिख़री दुकानें , ठेले .......यहाँ-वहाँ बेतरतीब खड़ी गाड़ियाँ, स्कूटर, मोटरसाईकिलें, साईकिलें और फ़िज़ा में घुलती देस की इन गलियों में लिपटी धूल की महकीली गंध । "

कई गाय और बछिया तसल्ली से घूम रही हैं। एक गधा सामने से गुज़र रहा है। काठ की गाड़ी पर लकड़ी की प्लाई और बनियान में बैठे अपने मालिक को बिठाए।

किले के दरवाजे के एक ओर सामने कचरे का बदबूदार लोह ढाँचा रखा है । नगरपरिषद ने रखा होगा शायद .....सफाई व्यवस्था बनाए रखने को , मगर उड़-उड़कर नाक में आती इस सड़न को कैसे कैद किया जाए ।

पास ही में सफ़ेद मूर्ति में ढले गाँधी जी खड़े हैं। गले में मालाएँ हैं ...गैंदे के फूल की । आस-पास उड़ती धूल है, गाड़ियों का धुँआ है, और बदबू है। इस बसावट को गाँधी चौक कहते हैं। नागौर के सरकारी बस स्टैंड से आप यहाँ टेंपो या कहें तो ऑटो में बैठ कर पहुँच सकते हैं। सिर्फ़ तीन रुपये में.... ।

ज्यूस की दुकान में काम करने वाला 19-20 साल का एक लड़का झाड़ू निकाल रहा है । अपने दायरे के कचरे को सड़क के बीचों-बीच डाल रहा है। यहाँ कोई दायरा सड़क की हद के लिए तय नहीं है। जितना भाग छूट जाए ...चलने को ...वही सड़क है।

दिल्ली-६ के चाँदनी चौक की बात होती है । देश के भीतर घुसिए आपको कई चाँदनी-चौक नज़र आएँगे ।

इस गाँधी चौक के एक और 1956 में स्थानीय पत्थरों बना श्री नागौर पुस्तकालय है। सैयद सैफुद्दीन जिलानी रोड़ की तख्ती लगा दरवाजा है। इसके नीचे से गुजरती शाही ऐतिहासिक रोड़ आज एक संकरी लोकतान्त्रिक गली में तब्दील हो चुकी है। मेले का सा माहौल है।

नागौर सूफी दरबार कोंसर्ट होने को है। किले के कर्मचारी इस मुख्य दरवाजे के आगे चहल-कदमी कर रहे हैं। बातें कर रहे हैं।

पास में ही पुलिस चौकी है। लेकिन आज पुलिस की विशेष व्यवस्था है। बड़ी-बड़ी चमक-दमक से भरी गाड़ियों में बड़े और इज्ज़तदार लोग किले में प्रवेश कर रहे हैं। मैं बाहर खड़ा हूँ ......क्योंकि मैं बड़ा और इज्ज़तदार नहीं हूँ।

( जारी ....)

गजेन्द्र सिंह भाटी


Wednesday, 4 March 2009

गाँवों में इंसान अभी इंसान ही है ...

( राजस्थान के नागौर-जोधपुर सड़क मार्ग को जाते समय रास्ते एक छोटा सा तिराहा आता है। इसे गोगेलाव कहते हैं। यहाँ आबादी बहुत कम है। अपने ननिहाल पांचौडी को जाते हुए , मैं यहाँ बस का इंतज़ार कर रहा था। दिल्ली से 2-3 दिन की छुट्टी लेकर अपने नानोसा के देहांत के कुछ ही दिनों बाद पहली बार अपनी नानीसा से मिलने और शोक बाँटने जा रहा था। यहाँ गोगेलाव में बैठकर मैंने देखा कि ......)


30 दिसम्बर 2008, दो पहर के 3 बजकर 12 मिनट

" यहाँ गाँवों में इंसान अभी इंसान ही है .........मशीन नहीं बना। जिंदगी की रफ़्तार धीमी और चुस्त है। दिन यहाँ बड़े होते हैं ...और रातें भी बड़ी ।

तीन बुजुर्ग बैठे बी पी यानि ब्लड प्रेशर और मोबाइल पर बातें कर रहे हैं। इस पर कि इन उपकरणों का उनके जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव क्या है ? बड़े शहरों के बच्चों को अगर इनकी बातें सुनाई दे तो ये वृद्ध उन्हें कनिष्ठ यानि इन्फिरिअर नज़र आयेंगे। शहरी बच्चे बेपरवाह होकर हँसेगें । यहाँ गोगेलाव स्टैंड से गुजरने वाली बसों के आने-जाने के समय में हुआ बदलाव , इनके बात करने से पता चल गया।

चारों ओर सुकून है। सुरक्षा का वातावरण है । किसी को कोई अफसोस नहीं है । पास में ग्राम पंचायत का नागौरी पत्थरों से बना ऑफिस है । एक-दो कमरों के इस पंचायत भवन पर छोटे आकार में मिनी सचिवालय लिखा है । यही कमरा सार्वजनिक पुस्तकालय भी है ।

सामने श्री श्री राधे प्रजापति मन्दिर है । पास से गुजरता राष्ट्रीय राजमार्ग शहरी गाड़ियों की आवाजाही से दमक रहा है । मगर महँगी गाडियाँ गुजारती ये सड़क परित्यक्ता सी लगती है।

अभी-अभी एक भोला-भाला युवक पचास ग्राम मोटे भुजिया एक अख़बार के टुकड़े पर लेकर खाने बैठा है । पिज्ज़ा-बर्गर का स्वाद इस युवक के लिए अभी गैर-जरुरी है । एक-एक कर के, धीरे-धीरे वह ब्रह्म सुखी एक भुजिया उठाता है और धीरे ही खाता है। ताकि जल्दी खत्म न हो । और खाली पेट को कुछ भरावट का एहसास हो ।"

गाँवों और उनके बारे में ऐसी बातें फिर कभी ........

गजेन्द्र सिंह भाटी