30 दिसम्बर 2008, दो पहर के 3 बजकर 12 मिनट
" यहाँ गाँवों में इंसान अभी इंसान ही है .........मशीन नहीं बना। जिंदगी की रफ़्तार धीमी और चुस्त है। दिन यहाँ बड़े होते हैं ...और रातें भी बड़ी ।
तीन बुजुर्ग बैठे बी पी यानि ब्लड प्रेशर और मोबाइल पर बातें कर रहे हैं। इस पर कि इन उपकरणों का उनके जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव क्या है ? बड़े शहरों के बच्चों को अगर इनकी बातें सुनाई दे तो ये वृद्ध उन्हें कनिष्ठ यानि इन्फिरिअर नज़र आयेंगे। शहरी बच्चे बेपरवाह होकर हँसेगें । यहाँ गोगेलाव स्टैंड से गुजरने वाली बसों के आने-जाने के समय में हुआ बदलाव , इनके बात करने से पता चल गया।
चारों ओर सुकून है। सुरक्षा का वातावरण है । किसी को कोई अफसोस नहीं है । पास में ग्राम पंचायत का नागौरी पत्थरों से बना ऑफिस है । एक-दो कमरों के इस पंचायत भवन पर छोटे आकार में मिनी सचिवालय लिखा है । यही कमरा सार्वजनिक पुस्तकालय भी है ।
सामने श्री श्री राधे प्रजापति मन्दिर है । पास से गुजरता राष्ट्रीय राजमार्ग शहरी गाड़ियों की आवाजाही से दमक रहा है । मगर महँगी गाडियाँ गुजारती ये सड़क परित्यक्ता सी लगती है।
अभी-अभी एक भोला-भाला युवक पचास ग्राम मोटे भुजिया एक अख़बार के टुकड़े पर लेकर खाने बैठा है । पिज्ज़ा-बर्गर का स्वाद इस युवक के लिए अभी गैर-जरुरी है । एक-एक कर के, धीरे-धीरे वह ब्रह्म सुखी एक भुजिया उठाता है और धीरे ही खाता है। ताकि जल्दी खत्म न हो । और खाली पेट को कुछ भरावट का एहसास हो ।"
गाँवों और उनके बारे में ऐसी बातें फिर कभी ........
गजेन्द्र सिंह भाटी
" यहाँ गाँवों में इंसान अभी इंसान ही है .........मशीन नहीं बना। जिंदगी की रफ़्तार धीमी और चुस्त है। दिन यहाँ बड़े होते हैं ...और रातें भी बड़ी ।
तीन बुजुर्ग बैठे बी पी यानि ब्लड प्रेशर और मोबाइल पर बातें कर रहे हैं। इस पर कि इन उपकरणों का उनके जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव क्या है ? बड़े शहरों के बच्चों को अगर इनकी बातें सुनाई दे तो ये वृद्ध उन्हें कनिष्ठ यानि इन्फिरिअर नज़र आयेंगे। शहरी बच्चे बेपरवाह होकर हँसेगें । यहाँ गोगेलाव स्टैंड से गुजरने वाली बसों के आने-जाने के समय में हुआ बदलाव , इनके बात करने से पता चल गया।
चारों ओर सुकून है। सुरक्षा का वातावरण है । किसी को कोई अफसोस नहीं है । पास में ग्राम पंचायत का नागौरी पत्थरों से बना ऑफिस है । एक-दो कमरों के इस पंचायत भवन पर छोटे आकार में मिनी सचिवालय लिखा है । यही कमरा सार्वजनिक पुस्तकालय भी है ।
सामने श्री श्री राधे प्रजापति मन्दिर है । पास से गुजरता राष्ट्रीय राजमार्ग शहरी गाड़ियों की आवाजाही से दमक रहा है । मगर महँगी गाडियाँ गुजारती ये सड़क परित्यक्ता सी लगती है।
अभी-अभी एक भोला-भाला युवक पचास ग्राम मोटे भुजिया एक अख़बार के टुकड़े पर लेकर खाने बैठा है । पिज्ज़ा-बर्गर का स्वाद इस युवक के लिए अभी गैर-जरुरी है । एक-एक कर के, धीरे-धीरे वह ब्रह्म सुखी एक भुजिया उठाता है और धीरे ही खाता है। ताकि जल्दी खत्म न हो । और खाली पेट को कुछ भरावट का एहसास हो ।"
गाँवों और उनके बारे में ऐसी बातें फिर कभी ........
गजेन्द्र सिंह भाटी