Wednesday, 4 March 2009

गाँवों में इंसान अभी इंसान ही है ...

( राजस्थान के नागौर-जोधपुर सड़क मार्ग को जाते समय रास्ते एक छोटा सा तिराहा आता है। इसे गोगेलाव कहते हैं। यहाँ आबादी बहुत कम है। अपने ननिहाल पांचौडी को जाते हुए , मैं यहाँ बस का इंतज़ार कर रहा था। दिल्ली से 2-3 दिन की छुट्टी लेकर अपने नानोसा के देहांत के कुछ ही दिनों बाद पहली बार अपनी नानीसा से मिलने और शोक बाँटने जा रहा था। यहाँ गोगेलाव में बैठकर मैंने देखा कि ......)


30 दिसम्बर 2008, दो पहर के 3 बजकर 12 मिनट

" यहाँ गाँवों में इंसान अभी इंसान ही है .........मशीन नहीं बना। जिंदगी की रफ़्तार धीमी और चुस्त है। दिन यहाँ बड़े होते हैं ...और रातें भी बड़ी ।

तीन बुजुर्ग बैठे बी पी यानि ब्लड प्रेशर और मोबाइल पर बातें कर रहे हैं। इस पर कि इन उपकरणों का उनके जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव क्या है ? बड़े शहरों के बच्चों को अगर इनकी बातें सुनाई दे तो ये वृद्ध उन्हें कनिष्ठ यानि इन्फिरिअर नज़र आयेंगे। शहरी बच्चे बेपरवाह होकर हँसेगें । यहाँ गोगेलाव स्टैंड से गुजरने वाली बसों के आने-जाने के समय में हुआ बदलाव , इनके बात करने से पता चल गया।

चारों ओर सुकून है। सुरक्षा का वातावरण है । किसी को कोई अफसोस नहीं है । पास में ग्राम पंचायत का नागौरी पत्थरों से बना ऑफिस है । एक-दो कमरों के इस पंचायत भवन पर छोटे आकार में मिनी सचिवालय लिखा है । यही कमरा सार्वजनिक पुस्तकालय भी है ।

सामने श्री श्री राधे प्रजापति मन्दिर है । पास से गुजरता राष्ट्रीय राजमार्ग शहरी गाड़ियों की आवाजाही से दमक रहा है । मगर महँगी गाडियाँ गुजारती ये सड़क परित्यक्ता सी लगती है।

अभी-अभी एक भोला-भाला युवक पचास ग्राम मोटे भुजिया एक अख़बार के टुकड़े पर लेकर खाने बैठा है । पिज्ज़ा-बर्गर का स्वाद इस युवक के लिए अभी गैर-जरुरी है । एक-एक कर के, धीरे-धीरे वह ब्रह्म सुखी एक भुजिया उठाता है और धीरे ही खाता है। ताकि जल्दी खत्म न हो । और खाली पेट को कुछ भरावट का एहसास हो ।"

गाँवों और उनके बारे में ऐसी बातें फिर कभी ........

गजेन्द्र सिंह भाटी

12 comments:

Anonymous said...

aap ne sab kuch sahi likha hai sir,
but yaha bhi sahi hai ki badlav aur raftar hi manav ki pehchan hai........

aaj nahi to kal ye ganv bhi modernise ho jayenge......

sukh sagar
www.discussiondarbar.blogspot.com

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

But sukhsagar don't you feel that this extra- permissive attitude will lead to what ?

See your metros. What they've got in them ?

Simply nothing.

The thing I feel bad most is that we'll lose the innocence only existing now in villages.

If you don't wan't to ponder over what you see in your own society, than it is disturbing.

Why should we let anything go by without refining ?

RAJNISH PARIHAR said...

gaanv ke aise hi anubhavon se roz rubru hota hun..sahi chitran kiya hai..THANX

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

villege me abhee apnapan baki hai, narayan narayan

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

हिंदी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है ,आपके लेखन के लिए मेरी शुभकामनाएं ...........

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

Thank you all from the bottom of my heart for commenting with great affection on my blog.

Very kind of you.

sorry for being late for the post after such a long time.I take care of next posts.

God bless you all.
Gajendra singh bhati
IIMC, New Delhi

वन्दना अवस्थी दुबे said...

स्वागत है आपका....

Satish Chandra Satyarthi said...

बहुत सही कहा है आपने.

Harshvardhan said...

...yah jaankar harsh hua apne aakhar me post ka silsila phir se shuroo ho gaya hai... maheene me kabhi nayi post daal diya kariye... lambe samay ke baad post padkar achcha laga... gaavo ke baare me likhna jaare rakho ... asha hai aakhar me ab nayi post dekhne ko milti rahegi


harsh

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

Thank you all .

Always yours.

I'll do my best that what my friend harsh has requested can be done.

Love.
Respect.

gajendra singh bhati

सुशील छौक्कर said...

गाँवो पर अगली पोस्ट का इंतजार।

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

To सुशील कुमार छौक्कर ji....

Thank you very much.
I appreciate...

god bless you.