चंद धनी पर्यटकों और 1000 रूपये की टिकिट खरीद सकने वाले कुछ आला रईसों की पहुँच ही इस सूफ़ीयाना मौसिकी तक थी। मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के कर्ताधर्ता जोधपुर के महाराज गज सिंह जी, उनकी रानी, पुत्री राजकुमारी नंदिनी, भाई महाराज दिलीप सिंह, राजकुमार शिवराज सिंह, महेश बाबू और राजघराने के दूसरे सदस्य इसके आयोजन में शामिल थे। ब्रिटेन का हेलन हेमलिन ट्रस्ट और बनियन ट्री भी प्रायोजन में शामिल था। 31 जनवरी और 1 फरवरी को शाम 7 से 10 बजे तक नागौर के अहिछ्त्रगढ़ किले में यह महफ़िल सजनी थी।
अपने पिता की बदौलत मुझे भी रूमानियत और सूफ़ियत को देख -सुन -महसूस कर पाने का मौका मिलने वाला था। नागौर किले तक पहुँचने से लेकर सूफ़ी दरबार की आखिरी पेशकश तक मैंने क्या अनुभव किया ......हाज़िर है। )
'मैं नागौर किले के सामने खड़ा इस इंतज़ार में हूँ कि एक परिचित सज्जन आए और मुझे अन्दर जाने की अनुमति दिलवा दें
" सदियों पुराने नागौर के अहिछ्त्रगढ़ किले का मुख्य दरवाज़ा ...सामने जीता-जागता भरा हुआ मैदान .....चारों तरफ़ बिख़री दुकानें , ठेले .......यहाँ-वहाँ बेतरतीब खड़ी गाड़ियाँ, स्कूटर, मोटरसाईकिलें, साईकिलें और फ़िज़ा में घुलती देस की इन गलियों में लिपटी धूल की महकीली गंध । "
कई गाय और बछिया तसल्ली से घूम रही हैं। एक गधा सामने से गुज़र रहा है। काठ की गाड़ी पर लकड़ी की प्लाई और बनियान में बैठे अपने मालिक को बिठाए।
किले के दरवाजे के एक ओर सामने कचरे का बदबूदार लोह ढाँचा रखा है । नगरपरिषद ने रखा होगा शायद .....सफाई व्यवस्था बनाए रखने को , मगर उड़-उड़कर नाक में आती इस सड़न को कैसे कैद किया जाए ।
पास ही में सफ़ेद मूर्ति में ढले गाँधी जी खड़े हैं। गले में मालाएँ हैं ...गैंदे के फूल की । आस-पास उड़ती धूल है, गाड़ियों का धुँआ है, और बदबू है। इस बसावट को गाँधी चौक कहते हैं। नागौर के सरकारी बस स्टैंड से आप यहाँ टेंपो या कहें तो ऑटो में बैठ कर पहुँच सकते हैं। सिर्फ़ तीन रुपये में.... ।
ज्यूस की दुकान में काम करने वाला 19-20 साल का एक लड़का झाड़ू निकाल रहा है । अपने दायरे के कचरे को सड़क के बीचों-बीच डाल रहा है। यहाँ कोई दायरा सड़क की हद के लिए तय नहीं है। जितना भाग छूट जाए ...चलने को ...वही सड़क है।
दिल्ली-६ के चाँदनी चौक की बात होती है । देश के भीतर घुसिए आपको कई चाँदनी-चौक नज़र आएँगे ।
इस गाँधी चौक के एक और 1956 में स्थानीय पत्थरों बना श्री नागौर पुस्तकालय है। सैयद सैफुद्दीन जिलानी रोड़ की तख्ती लगा दरवाजा है। इसके नीचे से गुजरती शाही ऐतिहासिक रोड़ आज एक संकरी लोकतान्त्रिक गली में तब्दील हो चुकी है। मेले का सा माहौल है।
नागौर सूफी दरबार कोंसर्ट होने को है। किले के कर्मचारी इस मुख्य दरवाजे के आगे चहल-कदमी कर रहे हैं। बातें कर रहे हैं।
पास में ही पुलिस चौकी है। लेकिन आज पुलिस की विशेष व्यवस्था है। बड़ी-बड़ी चमक-दमक से भरी गाड़ियों में बड़े और इज्ज़तदार लोग किले में प्रवेश कर रहे हैं। मैं बाहर खड़ा हूँ ......क्योंकि मैं बड़ा और इज्ज़तदार नहीं हूँ।
( जारी ....)
गजेन्द्र सिंह भाटी
8 comments:
badhiya yaatra vivaran .
अच्छा विवरण है.
yah hui naa baat
gagar me sagar hai yah post. bas kabhi kabahar apne aakhar me likhna jaari rakho. achcha lag raha hai ab samay nikalkar aakhar me likhne ka silsila chal pada hai ... asha karta hoo isko jaari rakhoge
god bless u
harsh
Thanks you Harsh.
It is good to see you commenting.
I am extremly sorry, but I could not complete the post.
By the way thank you all for commenting.
god bless you all.
kiya batao yaar chance hi nahi lagta hai.............. tumhari badi yaad aati hai....sahara mai vaise bahut kuchh seekhne ko mil rha hai lekin job ke yanha bilkuul hii kam chances lag rhe hain............ab news room ki politics ke bare mai janneo bahut kuchh mil rha hai .....ab iimc aunga to sab kuchh btaa doonga....
wah bhai ek baar nagaur kya gaye sari yadein samet laye...........
likhte raho........
sukh sagar
lucknow
nagaur qile ke aaspas ke mahool ko aap ne bade hi naturar tarike se prastoot kiya hai,observaton aur vi achcha ho sakra hai,aap ne saral aur satik bhasha ko pesh kiya hai "KEEP WRITING"
bahuit hi achcha sansmaran likha hai apne...
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