Wednesday, 27 August 2008

" बोए खेत काटे रेत : आज का किसान ग्लोबलाइजेशन तले "







सबका पेट भरने वाला, भारत का किसान आज भूखों मर रहा है। क्योंकि आज ग्लोबलाइजेशन तय कर रहा है। कौन राजा बनेगा, कौन रंक । सबसे ऊपर हुआ करने वाला किसान अब सबसे नीचे है । आईटी क्रान्ति के नारे बुलंद है। एसी के नीचे बैठकर कंप्यूटर चलाने वाला सम्रद्ध है , धूप के नीचे हल चलाने वाला काला है वृद्ध है।

पहले मौसम मेहरबान होता था। फसल लहलहाती थी। अब उसने भी किनारा कर लिया है। देश में नहरों की मौजूदगी भी बिखरी हुई है। जैसे तैसे करके होने वाली फसल ....खरीदने कोई नहीं आता है। सरकार आती है तो मुठ्ठी भर रुपयों के साथ । बड़ी कंपनियाँ विदेशों से सस्ता धान खरीदतीं हैं। सीमाँ कर ने महँगे मोबाइल टकेके भाव कर दिए तो विदेशी फसलें भी टके के मोल मिलने लगीं ।

महाराष्ट्र में पशु नहीं मरते , जितने तो किसान जहर खा लेते हैं। जिसके पास जहर के पैसे भी नहीं होते हैं वे खेत की ही किसी सूखी खेजड़ी से झूल जाते हैं। कपास की खेती करते हैं, पर पहनने को लंगोट के अलावा कुछ भी नहीं है। अब तो किसानों को भी मरनेकी आदत सी हो गई है। जिस दिन नहीं मरे, उस दिन लगता ही नहीं कि भारत में ग्लोबलाइजेशन है।

मजदूर किसान
हितों को झंडा बनाकर आगे बढ़ी पार्टियाँ, हँसिया और गेहूँ की बाली, अपनी पार्टी कार्यालयों की दीवारों पर पुतवाती हैं। फिर अंग्रेज़ी में लेख लिखतीं हैं , भाषण देती हैं।
सरकार आज लाचार हैं? इतनी कि , किसान भी नहीं ।


ग्लोबलाइजेशन के लेंस से झाँककर यदि देखें , तो यहाँ का किसान ...ऐसा लगता है कि पुरा पाषाणकाल में से निकलकर कोई आदिवासी आ पहुँचा है। लगता है कि ....इन्हें गुलाम बनाकर सिर्फ़ खेती करवानी चाहिए। ताकि हम वैश्वीकरणका शुक्रिया अदा कर सकें। आईटी क्रांति को दोनों कन्धों पर उठाकर नाँच सकें।


सामने नीचे बैठा ...विदर्भ के ही किसी स्वर्गीय किसान का बेटा , संग-संग नाच रहे ग्लोबलाइजेशन की बलइयां ले सके।

" ये चाय वाले लड़के क्या बाल मजदूर हैं ?"


सुबह उठते ही... मैं सबसे पहले जिससे बात करता हूँ , " वह एक चाय वाला लड़का है। आधे बाजु की बुशर्ट पहने, मुँह लटकाए ऐसे लगता है .... जैसे नींद लेने के लिए सदियों से तरस रहा हो। आगे स्टोव पर चढ़ा चाय का टोपिया, हरदम चायपतीमय दूध से भरा रहता है। पास ही में एक बड़ी नल लगी बरनी लगी है। उसके नजदीक प्लास्टिक की छोटीं गिलासें उल्टी खड़ी हैं। और आगे ब्रेड ...अंडा ...चावल...
जो जैसा मांगे वैसा बिना जवाब दिए बना दो। .....उसकी तो पैसे लेने की इच्छा तक नहीं होती हैं। .....होती है तो बस एक चीज़ लेने की और.... वो है........."नींद"।

" होठ का निचला भाई, हमेशा लटका रहता है ....उसके उदास मुँहकी तरह। लगता है बहुत वजनी है। शरीर एकदम ठंडा ........नहाया हुआ। आख़िर नींद जो उड़ानी होती है "

मैं उसके सामने पँहुचते ही कहता हूँ .... " चाय "!

उसकी आँखे इशारे में ही बोल पड़ती हैं, " लो एक और चाय का नशेड़ी! " उसकी मशीनी रफ्तार " स्मूथली " चाय की गिलास भर देती है। और अनमने ढंग से वह ४ रुपए ले लेता है ।

हर चाय के बाद शायद उसे लगता है कि अब उसका मालिक आएगा और कहेगा ....................." नींद !"

तभी सामने से आवाज आती है , ' ऐ छोटू ...................एक चाय !'
और उसकी आँखे ................. ।

" हँसी कुदरत की सबसे बड़ी नेमत है "


" सुबह - सुबह पार्को में जोर-जोर से समूह बनाकर हँसते लोग, टेलीविजन पर राजू श्रीवास्तव को देखकर अस्पतालों में बेड पर लेटे और बैठकर हँसते लोग , ऑफिस में चाय की चुस्कियां लेते और भारत को क्रिकेट में जीतते देखकर हँसते लोग, चाय के ढाबे पर काम करते-करते हँसी-ठिठोली करते बच्चे और ओल्ड एज होम्स में एक-दूसरे की दुर्दशा पर चुहलबाजी कर हँसते अनाथ निशक्तजन !"

यह है कुदरत की सबसे बड़ी नेमत हँसी और उसका ग्लोबल चेहरा ।

वह जो नवजात है अपनी माँ की ममतामयी छांव में खेल रहा है, वह जो 90 साल का बूढा है अपनी जीवनसंगिनी के हाथ को थामे बगीचे में टहल रहा है, दोनों के मुँह में दाँत नहीं है.... लेकिन हँसी है ।

कहते हैं ...हँसी न हो तो जीवन शमशान की मिट्टी जैसा सख्त हो जाए। हँसी जन्नत को धरती पर ले आती है। भूखे खाली पेट इंसान को इसे खाने के लिए रूपया नहीं चुकाना पड़ता। इस कल्पवृक्छ की छाँव अथाह है।

आज हँसाकर रोगी का इलाज किया जाता है। हँसी-खुशी दोस्त मिलते हैं। जिन्दगी के पलों को यादगार बनाते है। तेजी से दौड़ती जिन्दगी पूरा स्वाद देने लगती है। सूरज की पहली किरण, धरती के असंख्य फूलोँ को हँसाती है। हँसी की आजाद आवाज प्रकृति के मन्दिर में घंटियों की मीठी राग छेड़ जाती है

जीवन में सब कुछ हाथ से रेत की तरह फिसल जाता है.... बस हँसी ही हाथ थामे हँसती रहती है।