Wednesday, 27 August 2008

" ये चाय वाले लड़के क्या बाल मजदूर हैं ?"


सुबह उठते ही... मैं सबसे पहले जिससे बात करता हूँ , " वह एक चाय वाला लड़का है। आधे बाजु की बुशर्ट पहने, मुँह लटकाए ऐसे लगता है .... जैसे नींद लेने के लिए सदियों से तरस रहा हो। आगे स्टोव पर चढ़ा चाय का टोपिया, हरदम चायपतीमय दूध से भरा रहता है। पास ही में एक बड़ी नल लगी बरनी लगी है। उसके नजदीक प्लास्टिक की छोटीं गिलासें उल्टी खड़ी हैं। और आगे ब्रेड ...अंडा ...चावल...
जो जैसा मांगे वैसा बिना जवाब दिए बना दो। .....उसकी तो पैसे लेने की इच्छा तक नहीं होती हैं। .....होती है तो बस एक चीज़ लेने की और.... वो है........."नींद"।

" होठ का निचला भाई, हमेशा लटका रहता है ....उसके उदास मुँहकी तरह। लगता है बहुत वजनी है। शरीर एकदम ठंडा ........नहाया हुआ। आख़िर नींद जो उड़ानी होती है "

मैं उसके सामने पँहुचते ही कहता हूँ .... " चाय "!

उसकी आँखे इशारे में ही बोल पड़ती हैं, " लो एक और चाय का नशेड़ी! " उसकी मशीनी रफ्तार " स्मूथली " चाय की गिलास भर देती है। और अनमने ढंग से वह ४ रुपए ले लेता है ।

हर चाय के बाद शायद उसे लगता है कि अब उसका मालिक आएगा और कहेगा ....................." नींद !"

तभी सामने से आवाज आती है , ' ऐ छोटू ...................एक चाय !'
और उसकी आँखे ................. ।

3 comments:

Anonymous said...

nice post.................................
sukh sagar

Harshvardhan said...

gajendra bahut acha likh rahe ho ese tarh se likhna jare rakho
bal majdoori ke sahi dard ko baya kar diya hai tumne es me

likhna jaree rakho. media me yah jaroree hai

harsh , bhopal

meri marzi said...

yaar gajjuu jo tune issme ladke ki photo dali hai na mei samjhta hoo ki ye photo hi bahut hai iss bal majdoori k dard ko baya karne k liye. jara uss ladke ki aankho mei dhekh.
mujhme usme ek intjaar nazar aa raha hai, mujhe usmei ek aasha nazar aa rahi hai, lekin sath hi mei wo uski baibasi ko bhi bata rahi hai.
likha bhi achha hai. but photo is fantastic.