Sunday, 21 February 2010

मीडिया तौसे छिन न जाए वॉचडॉग का तमगा!

एक लेखिका

पिल सिब्बल शिक्षा व्यवस्था की सारी खामियां हटाने में जुटे हैं। ग्रेड सिस्टम, एक सिलेबस और उच्च तकनीकी संस्थाओं की बाढ़ लाने को तैयार है। नाकारा यूनिवर्सिटीज को ब्लैक-लिस्टेड किया जा रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री अपनी ऊट-पटांग फिल्मों के बीच कभी समाज को आईना दिखाने की कोशिश करती है। आमिर खान सरीखे गिने चुने अभिनेता समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने में जुटे है। उनका कहना है कि अगर बच्चे इडियट है तो भी कोई बात नहीं - उन्हें वो करने दो, जिसमें उनकी रूचि है।

देश भर से युवाओं और बच्चों की आत्महत्याओं की खबरों के बीच, लखनऊ के एक एम. ए. सी. टॉपर युवक के कमरे में बंद होकर अंधाधुंध फायरिंग करने की खबर आती है। घर वाले बताते है कि शमीम डिप्रेशन का शिकार था। पल भर में राष्ट्रीय समाचार चैनलों के कैमरे का फोकस वहां हो जाता है। पल पल की खबर। युवक की पॉजिशन- पुलिस का एक्शनसारे देश के दिमाग में सिर्फ एक उलझन, कि इस युवक को सही सलामत रखते हुए बंदूक छीनी कैसे जाए? करीब 38 घंटे के बाद पुलिस युवक को काबू कर पाने में कामयाब हो पाती है। लेकिन पल पल की रिर्पोटिंग देखकर एक सैंकेंड के लिए लगा, कि युवक तो मानसिक रूप से कमजोर है। मगर समाचार चैनलों मे तो देश का एक बड़ा बुद्धिमान वर्ग काम करता है। आखिर उसे क्या हो गया है? उसी दिन कॉमनवेल्थ शूंटिंग में दो खलाड़ी देश को गोल्ड मेडल दिलाते है। यह एक या दो मिनट के लिए स्क्रीन पर आता है। महंगाई की दर बढ़कर 8 फीसदी से ज्यादा हो जाती है और कोई समाचार चैनल इस विषय पर दस मिनट की बहस करने की जहमत भी नहीं उठाता है। शिबू सोरेन के सहायक पर सीबीआई कार्रवाई पर मातम जैसी शांति और तीन दिन पहले माओवादियों के खतरनाक इरादों के शिकार 24 जवानों की मौत पर कोई बैचेनी किसी समाचार चैनल के जरिए बाहर झांकती नजर नहीं आती।

एक दिन में सारे देश को मनोचिकित्सा के बारे में इतनी जानकारी हो जाती है। मगर भारत में बढ़ते मनोरोगियों की संख्या पर कोई चर्चा नहीं। शमीम को काबू करने की घटना का पल-पल का अपडेट और पुलिस को कोसने के बजाए अगर इस विषय पर एक नई बहस को जन्म मिलता तो दूसरों को अपने दायित्व निभाने की सीख देने वाले मीडिया के सही अर्थों में अपने दायित्व निभाने की बात सामने आ पाती। मगर इस अंतहीन बहस के अंत में बस इतनी सी बात कि मीडिया इन प्रश्रचिन्हों को हटाने के बजाए प्रश्रचिन्ह क्यों बन रहा है।

सहीं या गलत का निर्णय समय और परिस्थिति पर छोड़ दिया जाना चाहिए। पर सीमाएं तो तय करनी ही होगीं। कहने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है, कि ऐसे शमीम की समस्या पर बात न हो, लेकिन असली समस्या से दूरी क्यों? ऐसी हरकतों से वॉचडॉग पर निगरानी के लिए भी अब किसी डॉग की जरुरत महसूस हो रही है। और, मीडिया से वॉचडॉग की संज्ञा छिनने का खतरा तो नजर आ ही रहा है।

(एक लेखिका जयपुर स्थित एक पत्रकार हैं। राजस्थान के शीर्ष अखबारों में से एक में काम करने के साथ आप रचनात्मक लेखन भी करती रही हैं। मीडिया, समाज और देश के गंभीर मुद्दों पर संबंधित लोगों के हल्के रूख से उद्वेलित रहती हैं।)

6 comments:

sukh sagar said...

post poora khichdi ki taraha tha.....

apne sabhi problems ek hi svas me bata di......acha bhi kia.

lekin hume comment karne me utni hi sanse leni hogi.....

ab jaisa bhi hai media...ab aap k hath me hai, aap naujawan patrakaro ko hi kuch karna hoga.....

ye sab waise hi ho raha jaise Andhe k hath bater lag jaye...ya bhooke ko taj hotle ka dinner.......

abhi media mature nahi hai,tabhi nauni pauni ghtnao se kamana chahta hai....ise cnn aur bbc ban e me time lagega.

sukh sagar
http://discussiondarbar.blogspot.com/

Harshvardhan said...

गजेन्द्र यह सब इस कारण से हो रहा है क्युकि भारत में अभी इलेक्ट्रोनिक मीडिया परिपक्व नहीं हुआ है ..........आप जिस मीडिया से जुड़े है इस मामले में वह कही बेहतर है...........| अच्छा छोटी रहे हो आपने ब्लॉग में इन दिनों आमंत्रित मेहमानों के लेख डाल रहे हो ..............


www.boltikalam.blogspot.com

kalpana lok said...

badhia lekh...

kalpana lok said...

आशीष प्रभात मिश्र
गजेन्द्र इसी तरह ब्लॉग पर विविधता लाते रहो ...... वास्तव में मीडिया को अपने अन्दर झाँकने की जरुरत है ..क्या गलत कह रहा हु.... बढ़िया लेख ... ...सुभकामना

गजेन्द्र सिंह भाटी said...

नहीं आशीष, तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो।
मीडिया को खुद में झांकने और सुधार करने की पूरी जरूरत है।
अब कौन आत्मावलोकन करने की जरूरत को पूरी शिद्दत से महसूस करता है और कौन नहीं, यह तो व्यक्ति और संस्थान विशेष पर है।
खैर, टिप्पणी द्वारा इस बातचीत में भाग लेने के लिए एक लेखिका की ओर से तुम्हारा शुक्रिया।

शुभकामनाएं।
धन्यवाद।

rajneesh pandey said...

majdooro ko patrakar mat kahiye ye patrakaro ki beijjati karne jaisi baat hogi.aapne jin baato ka ullekh kiya hai vah kam doosre ke dimaag se kam krne vaale media majdoor va media dalal ke logo ka hai. jinhe kaam karna hai vo delhi ko chodkar bihar aur chhattisgarh jaise isthano par kaam kar rahe hai. aapki chinta vaajib hai lekin jameeni star par jarurat hai aise maamle ho to aadesh kariyega hamari team us par kaam karegi aapke vichar samman aur karya me parinit karne layak hai